Film Gulabo Sitabo story in Hindi
परिचय-
कभी बचपन में कठपुतली वाला खेल देखा है? एक मजेदार इंसान अपने दोनों हाथों में दो पुतलों को एक दूसरे के सामने रख कर खूब गुत्थम गुथा कराता है, लड़ाई होती तो पुतलों की है लेकिन सारा मजा तमाशा देखने वाले ही बटोर ले ते हैं। लेकिन कभी सोचा है कि आपकी डोर किसके हाथों में है? आपको नचाने वाला कौन है? क्या वाकई जिंदगी के हर दूसरे मोड़ पे कोई हमारी फिरकी लेता है और आत्मनिर्भरता जैसा शब्द केवल एक धोखा है? घबराईये नहीं सारे सवालों के जवाब देने के लिए एक धांसू फिल्म मार्केट में आई है जिसके चेहरे पर नकाब तो Comedi का है लेकिन हकीकत में ये इंसान के खुद को सबसे चालक समझने वाली सोच पे कीचड़ से सनी हुई चप्पल फेंक के मारती है। Hello friends मैं हूँ Premlal Rana, welcome to filmy review of Goolabo Sitabo in hindi.Gulabo Sitabo story in hindi
कहानी लखनऊ के गालियों से शुरू होती है, जहां पर मिर्जा साहब (अमिताभ बच्चन) अपने पुरानी हवेली के साथ इश्क फर्मा रहे हैं कोई तूच्चा-मुच्चा प्यार नहीं एक एसी जानलेवा मोहब्बत जो मौत के बाद भी जुदा होने का इरादा नहीं रखते। लेकीन इस जन्मों जन्मों वाली प्यार के बीच में रोड़ा बन कर अटके हैं कुछ कपटी किराएदार जो बचपन से जवानी तक के सफर को हवेलि के आँगन मे ही पूरा करने के बाद हमेशा हमेशा के लिए कब्जाने का मन बना चुके हैं। किरायेदारों के मुखिया हैं बांके (आयुष्मान खुराना), जो वैसे तो आटे की चक्की से अच्छे खासे कमा लेते हैं लेकिन जब बात हवेली के किराये की आती है तो मिर्जा साहब को बेवकूफ़ बनाने के नए नए तरीके ढूँढ निकालते हैं। बस ये किराये वाली दुश्मनी के वजह से एक दिन पानी सर के ऊपर से निकल जाता है, और मिर्जा साहब पूरे किराये मंडली को हवेलि से नौ दो ग्यारह करने की प्लानिंग कर ते हैं।
Gulabo Sitabo movie review & cast
सामदाम दंड भेद का इस्तेमाल किया जाता है और कहानी में वकील से लेकर बिल्डर और देश को चलाने वाले नेता जी की भी एंट्री हो जाती है। वो कहावत है न "विनाश काले विपरित बुद्धी", ये कहावत सटीक तरीके से मिर्जा साहब पर फिट बैठती है। जो थोड़ी सी लालच और खूब सारी बेवकूफ़ी के कारण अपनी बेशकीमती हवेलि को रजिया की तरह गुंडों के बीच फंसा देते हैं।
क्या लगता है हवेली के साथ मिर्जा के अटूट रिश्ते में दरार पड़ जाएगी? या फिर 80 साल के उम्र में भी ये आशिक अपनी महबूबा हवेली के साथ इश्क फरमाने का जुगाड़ लगा लेंगे?
क्या बांके & कंपनी इतनी आसानी हवेली को छोड़ कर सड़क पर उतरने पर तैयार हो जाएंगे या फिर सीधी उंगली को थोड़ा टेढ़ा कर के घी निकालने की कोशिश करेंगे?
सबसे बड़ा सवाल, आखिर मिर्ज़ा और बांके के वर्ल्ड वॉर 3 वाली जंग में जीत आखिर किसकी होगी, कहीं एसा तो नहीं कि ईन दोनों के दुश्मनी के बीच मलाई कोई तीसरा ही चुरा के खा जाएगा?
इन सभी सवालों के जवाब देने का काम करता है फिल्म गुलाबो सीताबो।
Gulabo Sitabo movie review & cast
सामदाम दंड भेद का इस्तेमाल किया जाता है और कहानी में वकील से लेकर बिल्डर और देश को चलाने वाले नेता जी की भी एंट्री हो जाती है। वो कहावत है न "विनाश काले विपरित बुद्धी", ये कहावत सटीक तरीके से मिर्जा साहब पर फिट बैठती है। जो थोड़ी सी लालच और खूब सारी बेवकूफ़ी के कारण अपनी बेशकीमती हवेलि को रजिया की तरह गुंडों के बीच फंसा देते हैं।
क्या लगता है हवेली के साथ मिर्जा के अटूट रिश्ते में दरार पड़ जाएगी? या फिर 80 साल के उम्र में भी ये आशिक अपनी महबूबा हवेली के साथ इश्क फरमाने का जुगाड़ लगा लेंगे?
क्या बांके & कंपनी इतनी आसानी हवेली को छोड़ कर सड़क पर उतरने पर तैयार हो जाएंगे या फिर सीधी उंगली को थोड़ा टेढ़ा कर के घी निकालने की कोशिश करेंगे?
सबसे बड़ा सवाल, आखिर मिर्ज़ा और बांके के वर्ल्ड वॉर 3 वाली जंग में जीत आखिर किसकी होगी, कहीं एसा तो नहीं कि ईन दोनों के दुश्मनी के बीच मलाई कोई तीसरा ही चुरा के खा जाएगा?
इन सभी सवालों के जवाब देने का काम करता है फिल्म गुलाबो सीताबो।